पीलीभीत: स्वच्छता सर्वेक्षण में लेंगे फीडबैक, सुधार पर नहीं ध्यान..जानिए मामला
पीलीभीत, अमृत विचार। एक बार फिर से स्वच्छता सर्वेक्षण 2023 की परीक्षा शुरू हो चुकी है। इस बार टॉप शहरों की सूची में पीलीभीत को स्थान मिल पाएगा या नहीं, इसी पर सभी की निगाहें टिकी हुई है। नगर पालिका परिषद प्रशासन ने अपनी लाज बचाने को तैयारी तो की हैं, लेकिन आधी अधूरी।
इसकी वजह से सर्वेक्षण के दौरान अंक कटने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में अब शहर में कूड़ा निस्तारण और लाइट व्यवस्था को लेकर काम कराने में जुट गए हैं। स्वच्छता सर्वेक्षण में सिटीजन फीड बैक लिया जाना है लेकिन इसकी जानकारी अधिकतर शहरवासियों को है ही नहीं। सर्वेक्षण के लिए जल्द ही टीम भी आएगी।
करीब ढाई लाख आबादी वाले इस शहर में सफाई व्यवस्था दशकों पुराने हेल्थ मैन्युल के आधार पर ही चल रही है। शहर में 59 मोहल्ले और 27 वार्ड हैं। इन सभी वार्डों की साफ सफाई का जिम्मा 175 स्थाई सफाई कर्मचारी जबकि 180 आउटसोर्सिंग सफाई कर्मी पर है। शहर की सफाई व्यवस्था पर पालिका प्रशासन हर माह करीब 65 लाख रुपये खर्च भी करता है।
वित्तीय दृष्टिकोण से देखें तो नगर पालिका पिछले कुछ सालों से आर्थिक संकट से जूझ रही है। इन सबके बावजूद पालिका प्रशासन स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। यह बात दीगर है कि धनाभाव के बीच व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में पालिका प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं।
स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर केंद्रीय टीम शहर का औंचक दौरा कर वेरिफिकेशन करेगी। इसकी रिपोर्ट के आधार पर ही रैकिंग तय होगी। ऐसे में अब आधी अधूरी तैयारियों को पूरा कराने पर जोर दिया जा रहा है। जिसमें सफाई व्यवस्था पर विशेष ध्यान जिम्मेदार देने में जुट गए हैं। मगर, शहर के कई हिस्सों में अभी भी कूड़े के ढेर दोपहर तक दिखते हैं। वहीं कर्मिशियल इलाकों में रात्रिकालीन सफाई के भी दावे किए जा रहे हैं।
हालांकि इसमें व्यापारियों का कहना है कि यह सफाई चंद स्थानों तक सीमित है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि शहर में कहीं भी कूड़ेदान नहीं हैं। कूड़ा उठान की व्यवस्था भी लचर बनी हुई है। डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन के दावे हैं, लेकिन पांच वार्ड के अलावा कहीं भी डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन शुरु नहीं हो सका है।
डलावघर होने के बाद भी कई स्थानों पर खुले में कूड़ा फेंका जा रहा है। पानी निकास को नालों की साफ सफाई तो हुई लेकिन बारिश के बाद जलभराव की समस्या अभी भी बनी हुई है। वाटर ट्रीटमेंट के नाम पर महज एक नाले को जोड़ा गया है, जबकि अन्य नालों का गंदा पानी आज भी खकरा और देवहा नदी में बेरोकटोक डाला जा रहा है।
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