बेटे की सरकारी नौकरी होने पर भी मृत कर्मचारी की बेटी को अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार : High court 

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के मामले में माना कि अगर मृत कर्मचारी का पति या पत्नी पहले से ही सरकारी रोजगार में है तो अनुकंपा नियुक्ति  की वैधानिक शर्त को कर्मचारी के बच्चों तक बढ़ाया जा सकता है।

कोर्ट ने माना कि मृत कर्मचारियों के बेटे की सरकारी नौकरी होने से सिद्ध नहीं होता कि परिवार किसी आर्थिक तनाव में नहीं है। उत्तर प्रदेश डाईंग इन हार्नेस रूल्स, 1974 में मृत सरकारी कर्मचारी के आश्रितों की भर्ती के संबंध में प्रावधान है कि कर्मचारी के परिवार से एक सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति दी जाती है। सरकार की ओर से इस नियम में संशोधन किया गया, जिसके तहत मृत कर्मचारी का जीवनसाथी सरकारी रोजगार में नहीं होना चाहिए। मौजूदा मामले में याची के पिता प्राथमिक विद्यालय, मनिकापुर, ब्लाक बेलघाट, गोरखपुर में हेड मास्टर के पद पर कार्यरत थे। उनकी मृत्यु के बाद याची ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। याची 75% दिव्यांग होने के कारण पिता की कमाई पर निर्भर थी, याची ने अपने आवेदन के साथ शपथ पत्र दिया कि उसका बड़ा भाई सरकारी नौकरी में है, लेकिन वह परिवार से अलग रहता है। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, गोरखपुर ने आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया कि मृतक का बड़ा बेटा सरकारी कर्मचारी है, इसलिए परिवार पर कोई वित्तीय दबाव नहीं है, साथ ही उक्त नियम के अनुसार परिवार के किसी अन्य सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिल सकती। 

अंत में कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि विधायिका ने नियम में संशोधन किया, जिसमें बेटे को शामिल नहीं किया गया,क्योंकि उसकी कमाई का उपयोग उसके अपने परिवार (पत्नी और बच्चों) के भरण-पोषण के लिए किया जा सकता है। याची का दावा इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि उसका बड़ा भाई सरकारी कर्मचारी है, क्योंकि हलफनामे में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भाई परिवार से अलग रह रहा है। इसके अलावा रिकॉर्ड पर ऐसी सामग्री उपलब्ध नहीं है जिससे सिद्ध हो कि भाई की कमाई परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त है। अतः इस आधार पर बेसिक शिक्षा अधिकारी का आदेश रद्द करते हुए न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की एकल पीठ ने कुमारी निशा की याचिका को स्वीकार कर लिया।

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