शाहजहांपुर: कृषि विभाग की अनदेखी से धरती की कोख सुखाने की तैयारी, प्रतिबंध के बाद भी लग रहा साठा धान

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Published By Moazzam Beg
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शाहजहांपुर, अमृत विचार। कृषि विभाग की अनदेखी के चलते धरती की कोख सुखाने की तैयारी है। प्रतिबंध के बाद भी जिले में साठा लगने लगा है। जबकि साल 2018 में जलस्तर घटने के चलते साठा धान लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया था। 

अब दोबारा साठा की रोपाई शुरू होने के चलते जलस्तर और नीचे जाने की आशंका पैदा हो रही है। किसानों को जागरूक करने की जिम्मेदारी कृषि विभाग की है, लेकिन जिला कृषि अधिकारी ने इस संबंध में जानकारी होने से ही इंकार कर रहे हैं।

साल 2018 से पहले जिले में साठा धान का रकबा 60 हजार हेक्टेयर से ज्यादा हुआ करता था। तब गिरते हुए जलस्तर को देखते हुए जनपद में साठा धान की पैदावार पर प्रतिबंध लगाया गया था। तब इसका पुरजोर विरोध किया गया था, लेकिन अगले ही साल परिणाम सुखद सामने आए। 2018 से पहले जहां 100-150 फुट तक जलस्तर पहुंच गया था, वहीं 2017 में ही जलस्तर 80-90 फुट पर आ गया। क्षेत्र के जो नल, ट्यूबवेल जलस्तर गिरने से सूख गए थे वह आसानी से पानी उठाने लगे थे। 

साठा पर प्रतिबंध लगने के बाद किसानों ने साठा का विकल्प मक्का, बाजरा, आलू, खरबूजा, तरबूज की खेतीबाड़ी में ढूंढ लिया था। ज्यादातर किसान इस खेती को लेकर संतुष्ट भी हैं और आज भी साठा की खेती नहीं कर रहे हैं। विकल्प होने के बाद भी कुछ बड़े किसानों ने साठा धान की खेती करने के लिए पौध डाल दी थी और अब रोपाई शुरू कर दी है। जिसको लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं। 

हालांकि साठा धान लगाने का तमाम किसान विरोध भी कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि साठा की रोपाई के चलते फिर से ट्यूबेल की बोरिंग सूख जाएंगी और छोटे किसानों की फसलों को पानी नहीं मिल पाएगा। वाटर लेवल और नीचे चला जाएगा।

ध्यान न देने पर फिर बढ़ सकता है साठा का प्रचलन
अभी अधिकतर किसानों ने रबी की फसल काटकर खेत खाली नहीं किए हैं। इसके बाद साठा धान की रोपाई के रफ्तार पकड़ने की संभावना है। वर्तमान में जैतीपुर क्षेत्र में कई किसान साठा धान की रोपाई कर रहे हैं। साठा की फसल को काफी मात्रा में पानी की जरूरत होती है। बारिश का सीजन न होने

से ट्यूबवेल आदि से भू-गर्भ से पानी निकालकर खेत को लबालब किया जाता है। इससे भू-गर्भ जल स्तर तेजी से नीचे चला जाता है। साठा उत्पादन की अधिकता के कारण पंजाब और हरियाणा में इसे प्रतिबंधित किया जा चुका है। माना जाता है कि साठा साठ दिन में तैयार होने वाली फसल है। हालांकि,
इसके तैयार होने में लगभग 90 दिन का समय लग जाता है। इसकी सिंचाई के लिए पानी के अंधाधुंध दोहन से भू-गर्भ जलस्तर में लगातार गिरावट आती रहती है।

पुवायां तहसील में होता था साठा
एक समय में पुवायां तहसील में साठा धान सबसे ज्यादा होने लगा था। साल में तीन फसलें लेने के इरादे से किसान भारी संख्या में इसकी खेती करते थे। हालांकि इस धान को उगाने में लागत बहुत आती है, इसलिए इसकी खेती ज्यादातर बड़े किसान ही करते हैं।

एक समय पुवायां तहसील क्षेत्र में कृषि भू-भाग के कुल 35 प्रतिशत भाग पर साठा धान की खेती की जाने लगी थी। साठा धान काफी मात्रा में भूगर्भ जल खींच रहा था। मामले के तूल पकड़ने पर डीएम के आदेश पर इसे उगाने पर पाबंदी लगा दी गई थी। साठा धान के बीज की बिक्री करने वालों पर भी नकेल कसने की जरूरत है।

साठा धान के विषय में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है। बस इतना पता है कि साल 2018 में इस पर प्रतिबंध लगाया गया था। अब दोबारा किसान साठा धान लगाने लगे हों इसकी जानकारी नहीं है।-डॉ. सतीश चंद्र पाठक, जिला कृषि अधिकारी

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