इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, कहा- अवैध संबंध होना उकसावे के समान नहीं 

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दलित महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने वाले आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि केवल अवैध संबंध होना उकसाने के समान नहीं है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 14-ए(2) के तहत कमल भारभुजा द्वारा दाखिल आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए की।

कोर्ट ने माना कि भले ही अपीलकर्ता का मृतिका के साथ अवैध संबंध रहा हो, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि उसके उकसावे के कारण ही मृतिका ने आत्महत्या की। कोर्ट ने महोबा जिला अदालत द्वारा आरोपी की जमानत याचिका को खारिज करना वैध और न्यायसंगत नहीं माना और 24 जनवरी 2025 के आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया। 

कोर्ट ने अपीलकर्ता को साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ ना करने, गवाहों को प्रभावित ना करने, नियमित रूप से ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होने तथा मुकदमे के लंबित रहने के दौरान कोई भी अपराध करने से बचने का निर्देश देते हुए व्यक्तिगत बांड और दो जमानतदार प्रस्तुत करने की शर्त पर जमानत दे दी। अपीलकर्ता पर बीएनएस की धारा 108 और एससी/एसटी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज प्राथमिकी के अनुसार आरोप लगाया गया था कि उसने शिकायतकर्ता की पत्नी की हत्या की थी।

हालांकि जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि पहले से ही मृतिका के साथ अवैध संबंध में पड़े अपीलकर्ता ने उस पर शादी का दबाव डालकर उसे आत्महत्या के लिए उकसाया था। अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि अपीलकर्ता पर लगाए गए आरोपों को पुष्ट करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए हैं, जिससे अपीलकर्ता द्वारा मृतिका को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को सिद्ध किया जा सके। इसके अलावा अपीलकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं है और वह 1 जनवरी 2025 से जेल में निरुद्ध है। अंत में कोर्ट ने अपीलकर्ता की सशर्त जमानत मंजूर कर ली।

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