International Lefthanders Day: बायां हाथ, अनूठी चुनौतियां... दाएं हाथ की दुनिया में लेफ्ट-हैंडर्स के लिए अलग ही Challenges
नई दिल्ली। अगर आप स्वाभाविक रूप से अपने बाएं हाथ का अधिक उपयोग करते हैं, तो आप एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां अधिकांश चीजें दाएं हाथ वालों के लिए बनाई गई हैं। कैंची, नोटपैड, कैन ओपनर, और यहां तक कि सूप परोसने वाली करछी जैसी रोजमर्रा की वस्तुएं भी दाएं हाथ वालों को ध्यान में रखकर डिज़ाइन की जाती हैं। कंप्यूटर माउस को भी बाएं हाथ वालों के लिए दोबारा सेट करना पड़ता है। 13 अगस्त को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय बायां हाथ दिवस के अवसर पर, यह समझना जरूरी है कि बाएं हाथ वालों के सामने आने वाली चुनौतियां केवल भौतिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक भी हैं।
बचपन की चुनौतियां और सामाजिक पूर्वाग्रह
33 वर्षीय डबलिन में रहने वाले मीडियाकर्मी आयुष्मान पांडे ने अपने बचपन को याद करते हुए बताया कि बाएं हाथ से खाना खाने या लिखने पर उन्हें अक्सर डांट पड़ती थी। स्कूल में दाएं हाथ से पंजा लड़ाने में हारने पर उनका मज़ाक उड़ाया जाता था। पांडे ने बताया, “मुझे लगता था कि मेरे साथ कुछ गलत है। मैं सोचता था कि शायद मैं गलत हाथ का इस्तेमाल कर रहा हूँ।” कैंची जैसे सामान्य उपकरण का उपयोग करने में असमर्थता ने उन्हें लंबे समय तक अक्षम महसूस कराया। आयरलैंड में उन्हें बाएं हाथ वालों के लिए विशेष रूप से बनाई गई कैंची और अन्य उपकरणों के बारे में पता चला, जिसने उनकी जिंदगी को आसान बना दिया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आंकड़े
‘साइकोलॉजिकल बुलेटिन’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, विश्व की लगभग 10% आबादी, यानी करीब 80 करोड़ लोग, बाएं हाथ का उपयोग करते हैं। इस समूह में बराक ओबामा, बिल गेट्स, अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे दिग्गज शामिल हैं। फिर भी, बाएं हाथ वालों को अक्सर सामाजिक और सांस्कृतिक दबावों का सामना करना पड़ता है। मरियम वेबस्टर डिक्शनरी के अनुसार, “सिनिस्टर” शब्द, जिसका अर्थ “बुराई” से जोड़ा जाता है, लैटिन में “बायां” से उत्पन्न हुआ है, जो बाएं हाथ वालों के प्रति ऐतिहासिक पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
सुधारात्मक दबाव और इसके प्रभाव
28 वर्षीय कृतिका शर्मा (परिवर्तित नाम) ने बताया कि उनके पिता, जो एक शिक्षक थे, उनके बाएं हाथ से लिखने की आदत को “सुधारने” के लिए सख्ती करते थे। कृतिका ने कहा, “अगर मैं बाएं हाथ से लिखती, तो मेरी उंगलियों पर चोट पड़ती थी। दाएं हाथ से लिखना सीख तो लिया, लेकिन मेरा ध्यान लिखावट पर कम और डर पर ज्यादा रहता था।”
वरिष्ठ पारिवारिक परामर्शदाता मैत्री चंद बताती हैं कि बच्चों पर ऐसा सुधारात्मक व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल सकता है। वे कहती हैं, “बच्चे को उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति के खिलाफ दाएं हाथ का उपयोग करने के लिए मजबूर करना भ्रामक और हानिकारक हो सकता है। इससे बच्चे में हीनभावना पैदा हो सकती है।”
सफलता की कहानियां और स्वीकार्यता
क्रिकेट के दिग्गज सचिन तेंदुलकर की कहानी इसका जीवंत उदाहरण है। स्वाभाविक रूप से बाएं हाथ वाले सचिन ने दाएं हाथ से बल्लेबाजी में महारत हासिल की और इतिहास रच दिया। दूसरी ओर, दिल्ली के पत्रकार नीलेश भगत कहते हैं कि उन्हें कभी अपने बाएं हाथ को छिपाने के लिए मजबूर नहीं किया गया, जिसके कारण वे अपने सहकर्मियों के बीच खास महसूस करते हैं।
दिल्ली की एक स्कूल शिक्षिका रिद्धि (परिवर्तित नाम) का कहना है कि बच्चों को उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति के साथ विकसित होने देना चाहिए। वे कहती हैं, “बच्चे शुरुआत में दोनों हाथों का उपयोग करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे वे उस हाथ को चुनते हैं जिसमें उन्हें सहजता महसूस होती है। हमें उन्हें वही करने देना चाहिए।”
बायां हाथ दिवस न केवल बाएं हाथ वालों की उपलब्धियों का उत्सव है, बल्कि यह समाज को यह याद दिलाने का अवसर भी है कि हर व्यक्ति को अपनी स्वाभाविकता के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए। बाएं हाथ वालों की चुनौतियां हमें यह सिखाती हैं कि दुनिया को सभी के लिए समावेशी बनाने की जरूरत है।
यह भी पढ़ेंः 13 अगस्त: भारत में डिजाइन किए गए पहले स्वदेशी विमान ने भरी उड़ान
