बिठूर के इतिहास की सैर कराती है टिकैत राय बारादरी, 18वीं सदी में पत्थर घाट के साथ निर्मित बारादरी और मंदिर है वास्तुकला का बेहतरीन नमूना
प्रदेश की योगी सरकार इस ऐतिहासिक धरोहर को हेरिटेज टूरिज्म के रूप में करेगी विकसित
कानपुर। कानपुर से 18 किलोमीटर दूर गंगा के किनारे स्थित धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक नगरी बिठूर (ब्रह्मावर्त) में विभिन्न राजाओं ने अपनी जरूरत के हिसाब से गंगा स्नान के लिए 52 घाटों का निर्माण कराया था। इनमें पत्थर घाट भी एक है। इस घाट का निर्माण राजा टिकैत राय बहादुर ने कराया था।
घाट पर ही बारादरी बनी है, जिसे टिकैत राय बारादरी कहा जाता है। 18 वीं सदी में निर्मित पत्थर घाट, बारादरी और यहां बना मंदिर वास्तुकला का बेहतरीन नमूना और ऐतिहासिक धरोहर है। प्रदेश की योगी सरकार ने राज्य के जिन 11 विरासत भवनों औप किलों को पर्यटन स्थल में बदलने का फैसला लिया है, उनमें टिकैत राय बारादरी भी शामिल है।
बिठूर के पत्थर घाट पर बनी टिकैत राय बारादारी एक ऐतिहासिक इमारत है। करीब 0.217 एकड़ में निर्मित इस बारादरी में श्रद्धालु व दर्शनार्थी गंगा स्नान के दौरान रुकते थे। पत्थर घाट को लाल रंग के पत्थरों से निर्मित गया था। यहां बना शिव मंदिर बिठूर के मंदिरों में अलग स्थान रखता है। राजा टिकैत राय द्वारा पत्थर घाट को बनवाने की कहानी काफी रोचक और दिलचस्प है।
जानकारी के मुताबिक वर्ष 1814 में लखनऊ के नवाब ने अवध क्षेत्र के दीवान राजा टिकैत राय को हाथी खरीदने की सलाह दी। नवाब ने टिकैत राय को इसके लिए खजाने से स्वर्ण मुद्राएं दिलाईं। इन मुद्राओं से राजा टिकैत राय ने बिठूर में घाट बनवा दिया। घाट बन जाने पर लखनऊ जाकर नवाब से कहा कि हुजूर हाथी तो खरीद लिया है, लेकिन गंगा नदी के उस पार है।
कसौटी पत्थर का शिवलिंग
टिकैत राय ने इस बहाने से नवाब को हाथी पर बिठाकर गंगा के उस पार से पत्थर घाट दिखाते हुए कहा कि हुजूर, वह देखिए हाथी वहां खड़ा है। दरअसल, पत्थर घाट पर बने शिव मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह से किया गया था कि इसे किसी भी ओर से देखने पर हाथी का मस्तक नजर आता है। टिकैत राय की इस चतुराई और घाट का सौंदर्य देखकर नवाब बहुत खुश हुए
बिठूर के पत्थर घाट घाट के ऊपर एक शिव मंदिर है। इस मंदिर को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। सावन में यहां पूजा-अर्चना के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। मंदिर में ‘कसौटी’ के पत्थर का शिवलिंग स्थापित है। बलुआ मिट्टी के पत्थरों से निर्मित मंदिर को चारों कोनों से देखने पर हाथी के मस्तक दिखाई पड़ते हैं। सूर्य की किरणें शिवलिंग पर पड़ते ही अलौकिक छटा बिखेरती हैं। मंदिर की उत्तर दिशा में 10 फीट ऊंचा पत्थर का त्रिशूल स्थापित है।
राजा टिकैत राय के मुकुट में बनारहता था दो मछलियों वाला चिह्न
राजा टिकैत राय बहादुर आसिफउदौला के शासनकाल में अवध के दीवान थे। वह कायस्थ समाज से थे। हिंदू होने बावजूद आसिफउदौला के दरबार में उनका स्थान काफी ऊंचा था। राजा टिकैत राय ने अपने समय में कई मंदिर, मस्जिद, तालाब, बारादारी और पुलों का निर्माण कराया। लखनऊ को संवारने और सुविधा संपन्न बनाने में उन्होंने बड़ा योगदान दिया। कहा जाता है कि राजा टिकैत राय के मुकुट में दो मछलियों वाला चिह्न अंकित रहता था, प्रदेश शासन के राजकीय चिह्न में इसका इस्तेमाल देखा जा सकता है।
प्रदेश की योगी सरकार ने इस ऐतिहासिक धरोहर को पीपीपी मॉडल पर विरासत पर्यटन (हेरिटेज टूरिज्म) इकाई के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है। इसके तहत टिकैत राय बारादरी को हेरिटेज होटल या होम स्टे में बदला जा सकता है, जिसमें राजा-महाराजाओं के समय की शिल्पकला और संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी। बिठूर के धार्मिक और पौराणिक महत्व के साथ स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को सेहजने वाला म्यूजियम और आर्ट गैलरी बनाने की भी योजना है। इसमें पेंटिंग के जरिये, वाल्मिकी आश्रम, सीता रसोई, नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, ब्रह्मा की खूंटी, ध्रुव टीला जैसे स्थानों का इतिहास दर्शाया जाएगा। इसके साथ ही थीम पार्क बनाया जाना भी प्रस्तावित है।
ये भी पढ़े : ग्रामीण पर्यटन को मिलेगी नई दिशा: लखनऊ में कल से शुरू होगा 'टूरिज्म कॉन्क्लेव', योगी सरकार की पहल
