जनकपुर के बिना अधूरी है अयोध्या
अयोध्या जितना ही धार्मिक महत्व नेपाल के जनकपुर धाम का भी है। पूर्वी नेपाल में बिहार बार्डर के समीप स्थित जनकपुर माता सीता का मायका है। इसे बिहार का मिथिलांचल भी कहते हैं। मिथिलांचल के लोग स्वयं को भगवान राम के ससुराल से जुड़ा महसूस करते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि बिना जनकपुर के अयोध्या अधूरी है। जनकपुर धाम में हर रोज भजन-कीर्तन होने से पूरा इलाका भक्तिमय बना रहता है। पूरे कस्बे में हर घर पर राम पताका फहराती है।
सड़क के किनारे हर हिंदू के घर का मुख्य हिस्सा भगवा रंग में रंगा है। जनकपुर भगवान राम का ससुराल है। भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा के दिन मिथिला संस्कृति के अनुसार जनकपुर से माता सीता के ससुराल अयोध्या दो ट्रकों में भरकर सौगात भेजी गई थी। मान्यता है कि जब बेटी अपने ससुराल के नए घर में प्रवेश करती है, तो उसके मायके से कुछ सगुन भेजे जाते हैं।
कभी भारत का हिस्सा था जनकपुर
जनकपुर धाम प्राचीन काल में विदेह राज्य की राजधानी थी। जनकपुर मंदिर साल 1911 में बनकर तैयार हुआ था। 4860 वर्ग फीट में फैले इस मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु ने करवाया था। उनके कोई संतान नहीं था। यहां पूजा के दौरान उन्होंने मन्नत मांगी थी कि अगर उन्हें संतान होती है, तो यहां मंदिर बनवाएंगी। संतान की प्राप्ति के बाद महारानी वहां लौटीं और साल 1895 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ जो 16 साल में पूरा हुआ। उस समय मंदिर के निर्माण पर नौ लाख रुपये खर्च हुए थे, इसलिए इस मंदिर को नौलखा मंदिर भी कहते हैं। 1967 से इस मंदिर में 12 महीने अखंड कीर्तन चलता रहता है। 24 घंटे सीता-राम नाम का जाप लोग करते हैं।
राजा जनक के नाम पर हुआ नामकरण
अंग्रेजों के शासन के वक्त एक समझौते में नेपाल को मेची नदी के पूर्व और महाकाली नदी के पश्चिम के बीच का तराई क्षेत्र दिया गया था। इस तरह मिथिला का एक बड़ा भूभाग नेपाल में शामिल कर दिया गया, जनकपुर भी इसी क्षेत्र का हिस्सा था। राजा जनक के नाम पर इस शहर का नाम जनकपुर रखा गया था। राजा जनक की पुत्री सीता जिन्हें जानकी भी कहते हैं, उनके नाम पर इस मंदिर का नामकरण हुआ था। मंदिर में मां सीता की मूर्ति सन 1657 के आसपास की बताई जाती है।
अयोध्या से जनकपुर तक रामायण सर्किट
अयोध्या और जनकपुर को जोड़ने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामायण सर्किट का शुभारंभ किया है। जनकपुर धाम तक भारत से ट्रेन भी चलाई गई है। इसके लिए भारत से नेपाल का रेल समझौता हुआ है। कोंकण रेलवे कारपोरेशन, महाराष्ट्र ने 84 करोड़ 65 लाख रुपये कीमत की चार बोगी और इंजन समेत दो डीएमयू सवारी गाड़ी नेपाल को उपलब्ध कराई हैं। यशोदा श्रीवास्तव
