UP में भर्ती घोटालों की CBI जांच पर जमी धूल, आयोग की चुप्पी और शासन की सुस्ती बनी बाधा, अभिलेख तक नहीं सौंपे

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Published By Muskan Dixit
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धीरेंद्र सिंह, लखनऊ, अमृत विचार: प्रदेश में बहुचर्चित भर्ती घोटालों की सीबीआई जांच सालों से अधर में लटकी हुई है। भर्ती आयोग की चुप्पी और शासन की सुस्ती से अभिलेख तक नहीं सौंपे गए। करीब 60 हजार समन के बावजूद संबंधित एजेंसी, आयोग के अफसर-कर्मी, शासन और सत्ता से जुड़े लोग सहयोग करने नहीं आए। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोषियों को कठोर सजा दिलाने के शख्त निर्देश देते हुए यूपीपीएससी और शासन को दस्तावेज़ों सौंपने को कहा है।

योगी सरकार बनने के बाद प्रदेश की पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी सरकार के कार्यकाल (2012-2017) के दौरान हुई हजारों भर्तियों में बड़े पैमाने पर धांधली, भाई-भतीजावाद और अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ की शिकायतें सामने आने के बाद सीबीआई के जांच के आदेश दिए गए थे। वहीं, विधानसभा सचिवालय और विधान परिषद में की गई नियुक्तियों की जांच भी कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई को सौंपी गई थी, लेकिन इसमें भी अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी है। जांच की रफ्तार पर सवाल कई बार खुद सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों ने खड़े किए थे। जांच एजेंसी ने राज्य सरकार और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) पर सहयोग न करने का आरोप लगाते हुए मुख्य सचिव तक को पत्र भी लिखा।

सीबीआई सूत्रों के अनुसार, भर्ती घोटाले में अभियोजन स्वीकृति और आवश्यक दस्तावेज़ आयोग द्वारा अब तक उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। सीबीआई ने 60 हजार से अधिक समन भेजे, 10 हजार से अधिक अभ्यर्थियों के बयान दर्ज किए। लेकिन कार्रवाई के नाम पर ज़मीन पर कुछ नहीं दिखा। इससे न केवल जांच प्रभावित हो रही है, बल्कि न्याय की प्रक्रिया भी मंद पड़ गई है।

सीएम योगी सख्त, 15 दिन में सौंपे अभिलेख

2016 में अर्पित सिंह नाम से छह लोग एक्स-रे टेक्नीशियन के पद पर छह जिलों में भर्ती होने का मामला सामने आने पर मुख्यमंत्री योगी को हकीकत पता चली कि शासन ही सहयोग नहीं कर रहा है तो सख्त हो गए हैं। मुख्यमंत्री ने कार्मिक विभाग, गृह विभाग और विशेष सचिव (न्याय) को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सीबीआई को सभी आवश्यक दस्तावेज 15 दिनों में सौंपे जाएं। अभियोजन स्वीकृति और तकनीकी सहयोग तत्काल मुहैया कराएं, जिससे जांच में तेजी आए।

इन भर्तियों में गड़बड़ी हुई थी

यूपीपीएससी पीसीएस भर्तियाँ (2012–2015): लगभग 45,000 पदों पर हुई नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद, उत्तरमाला से छेड़छाड़, इंटरव्यू में पक्षपात जैसे गंभीर आरोप। कई अभियर्थियों के अंक बदले गए।

अपर निजी सचिव भर्ती (2010): मायावती सरकार के दौरान शुरू हुई यह भर्ती, सपा शासन में पूरी हुई। मेरिट में बार-बार बदलाव और मनचाहे अभ्यर्थियों की नियुक्ति का आरोप।

शिक्षक भर्ती परीक्षा (टीईटी पद- 68500): मूल्यांकन में गड़बड़ी, ओएमआरशीट में हेरफेर और सलेक्शन लिस्ट में फर्जीवाड़ा।

विधानसभा/विधान परिषद सचिवालय भर्ती: विधानसभा में चहेतों की भर्ती को लेकर उच्च न्यायालय ने सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं।

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