बरेली : दबाव में युवा...  NEET से पहले परफॉर्मेंस एंग्जाइटी से पार पाने की चुनौती

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Published By Vishal Singh
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सात मई को है नीट, असफल होने का डर कर रहा है परेशान

बरेली, अमृत विचार। जो पढ़ाई युवाओं के लिए जीवन भर की चुनौतियों से पार पाने का जरिया बननी चाहिए, वह खुद उनके लिए बड़ी चुनौती बन गई है। सात मई को नीट की परीक्षा में बैठने जा रहे तमाम युवा असफल होने के डर से तनाव का शिकार हो रहे हैं। पिछले कुछ समय में इनमें से कई युवाओं ने मनोचिकित्सकों से भी मदद मांगी है। मनोचिकित्सकों के मुताबिक नीट अभ्यर्थियों का यह डर दरअसल परफॉर्मेंस एंग्जाइटी है, जो अपने ऊपर खुद उनके या उनके अभिभावकों के दबाव की वजह से है।

नीट देने जा रहे अभ्यर्थी किस कदर इस परीक्षा का तनाव पाल रहे हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिला अस्पताल स्थित मनकक्ष में पिछले दो सप्ताह के अंदर 20 से ज्यादा अभ्यर्थियों ने संपर्क किया है। मन कक्ष के प्रभारी डॉ. आशीष के मुताबिक हेल्पलाइन पर संपर्क करने वाले ज्यादातर युवाओं ने खुलकर स्वीकार किया कि नीट की तारीख नजदीक आने के साथ उनका तनाव बढ़ता जा रहा है। उनका पूरा-पूरा दिन बेचैनी में गुजर जाता है। वह समझ नहीं पा रहे हैं कि ऐसी हालत में वे कैसे यह परीक्षा दे पाएंगे।

डॉ. आशीष के मुताबिक नीट अभ्यर्थियों का यह डर दरअसल परफॉर्मेंस एंग्जाइटी है जो नौकरी या परीक्षा जैसी किसी भी बात की अत्यधिक चिंता से पैदा होती है। काम में मन और भूख न लगने जैसी स्थितियों से गुजरने के बाद यह चिंता तनाव का रूप ले लेती है। नीट की तैयारी कर रहे युवाओं में भी परफॉर्मेंस एंग्जाइटी के लक्षण हैं। उन्होंने बताया कि मन कक्ष में संपर्क करने वाले सभी युवाओं की काउंसिलिंग की जा रही है।
दबाव बनाने के बजाय अच्छा माहौल देना ज्यादा कारगर

डॉ. आशीष कहते हैं कि किसी भी प्रतियोगी परीक्षा से पहले अभिभावकों का बच्चों पर टॉप करने या ज्यादा से ज्यादा पढ़ने का दबाव बनाना गलत है, ऐसा करने से बच्चे की मानसिक अवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है। इसके बजाय बच्चे को अच्छा माहौल देने के साथ तैयारी में उसका सहयोग करना चाहिए। उसे यह भी विश्वास दिलाना चाहिए कि एक परीक्षा में सफल न होने से भविष्य खत्म नहीं होता, जिंदगी में अवसर मिलते रहते हैं। बच्चों को रटने के बजाय ज्यादा से ज्यादा रिवीजन करना चाहिए। किसी परीक्षा की तैयारी के लिए अक्सर बच्चे रात को जगते हैं और दिन में सोते हैं। ऐसा भी नहीं करना चाहिए। दिनचर्या में बदलाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है।

खाते-पीते घर के, फिर भी एनिमिया के शिकार
खाते-पीते घरों के बच्चों को भी एनिमिया घेर रहा है। जिला अस्पताल में ही पिछले दो महीनों में ऐसे 14 बच्चों को चिह्नित किया गया है। इनमें चार की हालत इतनी गंभीर थी कि उन्हें फौरन खून चढ़ाना पड़ा। डॉक्टरों का कहना है कि अभिभावकों के खानपान का ख्याल न रखने की वजह से बच्चों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।

डॉक्टरों के अनुसार गर्मी की शुरुआत में बच्चे डायरिया का शिकार होते हैं और उनमें खून की कमी हो जाती है लेकिन इस बार मौसम में अब तक ठंडक है लिहाजा डायरिया के केस भी कम हैं। जिला अस्पताल में बच्चा वार्ड के प्रभारी डॉ. करमेंद्र के अनुसार जो बच्चे एनीमिया से ग्रसित मिले हैं, उनके परिजनों ने उन्हें फास्ट फूड का शौकीन बताया है। यह प्रमुख वजह है कि उनके शरीर को ठीक पोषण नहीं मिल पाता। एनीमिया के दूसरे कारण बुखार और आयरन की कमी भी हो सकते हैं।

एनीमिया के लक्षण
बच्चे की त्वचा का पीला पड़ना, थकान, कमजोरी और आलस का अनुभव, भागदौड़ करने से हांफना और सांस लेने में कठिनाई होना। एनीमिया पीड़ित बच्चे संक्रमण का भी जल्दी शिकार होते हैं। लंबे समय तक आयरन की कमी से उनमें एकाग्रता की कमी और पढ़ाई में मन न लगने जैसी समस्या हो सकती है।

ऐसे करें बचाव
हरी पत्तेदार सब्जियों, दालों, सूखे मेवे और फल का ज्यादा सेवन करना चाहिए। विटामिन ए और सी युक्त खाद्य पदार्थ खाने चाहिए। छह महीने से लेकर पांच साल तक के बच्चों को सप्ताह में दो बार एक मिली आयरन सिरप और पांच से 10 साल के बच्चों को हर सप्ताह बच्चों वाली एक आयरन की गोली खिलानी चाहिए।

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