हाईकोर्ट सख्त: निजी दुश्मनी के लिए न्यायालय का दुरुपयोग, याचिकाकर्ता पर 15 हजार रुपये का जुर्माना
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिका खारिज करते हुए जताई नाराज़गी, कहा : ‘यह कानूनी प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग’
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग पर कड़ा रुख अपनाते हुए इस संबंध में दाखिल एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिका "कानूनी प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग" है और इसका उद्देश्य केवल निजी बदला लेना प्रतीत होता है।
न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की एकल पीठ ने मनीष कुमार द्वारा दाखिल जनहित याचिका को खारिज करते हुए पारित किया और याची पर 15,000 का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने पाया कि याची ने पहले भी इसी संपत्ति और विपक्षी संख्या 6 के खिलाफ एक याचिका दाखिल की थी, जिसे अनुमति लिए बिना वापस ले लिया गया था। इसके बावजूद उसने पूर्व याचिका का जिक्र किए बिना दोबारा वही मुद्दा उठाया। कोर्ट ने इसे न्यायालय के साथ "लुका-छिपी" और "सत्य को दबाने का प्रयास" करार दिया।
विपक्षी के अधिवक्ता ने याचिका की स्वीकार्यता पर आपत्ति उठाई थी, जिसे कोर्ट ने उचित ठहराया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सत्य को दबाकर दाखिल याचिका कोई राहत पाने के योग्य नहीं होती। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याची ने खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताया, लेकिन इस दावे के समर्थन में कोई प्रमाण नहीं दिया कि उसका उद्देश्य सार्वजनिक हित नहीं, बल्कि व्यक्तिगत शत्रुता निभाना था। याची द्वारा जुर्माने का भुगतान न करने की स्थिति में जिला कलेक्टर, हाथरस को वसूली सुनिश्चित करने के आदेश भी दिए गए हैं।
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