रेम्ब्रांट और मुगल लघु चित्र: दो परंपराओं का अनूठा संवाद
मुगल दरबारों की बेजोड़ कलाकृतियों की डच स्वर्णयुग के महान चित्रकार रेम्ब्रांट ने की पुनर्व्याख्या
डच स्वर्ण युग के महान चित्रकार रेम्ब्रांट वान रिजन ने सन 1650 की शुरुआत में मुगल लघु चित्रों पर आधारित चित्रों का एक ऐसा अनूठा सेट तैयार किया था, जिसमें शाहजहां, जहांगीर, दारा शिकोह समेत तमाम मुगल दरबारियों और सूफियों के चित्र शामिल थे। वर्तमान में इनमें से 23 चित्र ही बचे हैं, जो दुनिया भर के विभिन्न संग्रहालयों में संरक्षित हैं, इनमें ब्रिटिश संग्रहालय, क्लीवलैंड म्यूजियम ऑफ आर्ट, जे पॉल गेट्टी म्यूजियम और रिज्क्सम्यूजियम के साथ-साथ निजी संग्रह भी शामिल हैं। ये चित्र एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आदान-प्रदान के साथ कला के क्षेत्र में नया संवाद स्थापित करने के लिए जाने जाते हैं। इसके साथ ही उस दौर में व्यापारिक जहाजों द्वारा स्थापित वैश्विक नेटवर्क को समझने की नई समझ प्रदान करते हैं।
रेम्ब्रांट वान रिजन (1606–1669) यूरोप के डच स्वर्णयुग के एक महानतम चित्रकार माने जाते हैं। उनकी कला में प्रकाश-छाया का अद्वितीय संतुलन, मानवीय भावनाओं की गहराई और धार्मिक तथा ऐतिहासिक विषयों की गूढ़ प्रस्तुति दिखाई देती है। रेम्ब्रांट अपनी आत्मकथात्मक शैली, यथार्थवाद और संवेदनशील चित्रण के लिए विख्यात हैं। लेकिन एक रोचक और कम चर्चित पहलू यह भी है कि रेम्ब्रांट का एक विशेष काल में भारतीय मुगल लघुचित्रों से गहरा आकर्षण रहा। सन 1650 के दशक में, जब रेम्ब्रांट आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे थे, तब उन्होंने कुछ नए रूपों और शैलियों का अध्ययन करना आरंभ किया। इसी दौरान उनके संपर्क में भारतीय मुगल दरबार की लघुचित्र परंपरा आई, जो कि उस समय डच व्यापारियों के माध्यम से यूरोप में पहुंची थी। अविभाजित भारत के मुगल दरबारों में बनी रंगीन, बारीक और बेजोड़ कलाकृतियां रेम्ब्रांट को इतनी प्रेरक लगीं कि उन्होंने इन चित्रों की नकल नहीं की, बल्कि अपने रेखा चित्रण के जरिये उसकी पुनर्व्याख्या की। इसी क्रम में रेम्ब्रांट ने 23 से 25 चित्र बनाए जो अब भी विभिन्न संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
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मुगल चित्रों में यूरोपीय यथार्थवाद की स्याही से भर दिया नया जीवन
रेम्ब्रांट अपने बनाए चित्रों में मुगल सम्राटों, दरबारियों, सूफियों और दरबारी जीवन के प्रसंगों को स्याही और कागज पर चित्रित करते हैं, परंतु मुगल चित्रों की अपेक्षा उनका चित्रण अधिक यूरोपीय यथार्थवाद और प्रकाश छाया प्रभाव से युक्त है।
... और सांस्कृतिक संवाद की संवाहक बन गईं पेटिंग्स
मुगल लघुचित्रों में जहां रेखाएं स्पष्ट, समतल और रंगों से भरपूर होती थीं, वहीं रेम्ब्रांट के चित्रों में आकृतियाँ अधिक त्रिआयामी, छायापूर्ण और भावपूर्ण प्रतीत होती हैं। उन्होंने मुगल पोशाक, पगड़ी, तलवार, बैठने की मुद्रा जैसी बाह्य विशेषताओं को तो अपनाया, लेकिन उन्हें यूरोपीय चित्रण की दृष्टि से पुनः गढ़ा। ऐसे में रेम्ब्रांट जैसे महान यूरोपीय चित्रकार का गैर-पश्चिमी कला में रुचि लेना उस समय के लिए विशेष बात थी। यूरोप में अक्सर एशियाई कला को प्राच्य वस्तु मानकर उपेक्षित किया जाता था। लेकिन रेम्ब्रांट ने इसे कलात्मक प्रेरणा के स्रोत के रूप में अपनाया, और यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक संवाद बन गया। यह संवाद यह भी दर्शाता है कि कला की सीमाएं भौगोलिक नहीं होतीं, बल्कि भाव और रूप का आदान-प्रदान दोनों ओर से हो सकता है।
चित्रकला में पूर्व और पश्चिम के कलात्मक मिलन की मिसाल
मुगल चित्रकारों ने जहां फारसी, भारतीय और चीनी परंपराओं को मिलाकर एक विशिष्ट शैली बनाई, वहीं रेम्ब्रांट ने उस शैली से प्रेरणा लेकर अपने यथार्थवादी दृष्टिकोण में उसे समाहित कर नया सृजन किया। रेम्ब्रांट और मुगल लघुचित्रों के बीच का यह अल्पज्ञात संबंध दर्शाता है कि महान कलाकार सीमाओं से नहीं, दृष्टिकोणों से बंधे होते हैं। रेम्ब्रांट का यह प्रयोगात्मक चरण केवल उनके चित्रकला विकास की एक धारा नहीं, बल्कि पूर्व और पश्चिम के कलात्मक मिलन की एक बेमिसाल मिसाल है। यह हमें बताता है कि जब एक यूरोपीय चित्रकार भारतीय दरबार की कला से प्रेरणा लेता है, तो एक नई, सार्वभौमिक दृश्यभाषा का जन्म होता है।
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