हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी : पहले और दूसरे मातृत्व अवकाश के मध्य 180 दिनों का अंतराल आवश्यक नहीं
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला कर्मचारी के मातृत्व अवकाश आवेदन को अस्वीकार करने के मामले में उत्तर प्रदेश उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के निदेशक के आचरण को गंभीरता से लेते हुए उन्हें व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में प्रस्तुत होने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि न्यायालय द्वारा कई मामलों में दिए गए स्पष्ट निर्देशों के बावजूद निदेशक ने बिना किसी उचित कारण के मातृत्व अवकाश आवेदन को अस्वीकार किया। यह आचरण कोर्ट के आदेश की सीधी अवमानना है। कोर्ट ने ध्यान दिया कि वर्तमान मामले में निदेशक ने कोर्ट के बाध्यकारी निर्देशों की अनदेखी की और वही आधार दोहराया, जिसे कोर्ट पहले ही खारिज कर चुकी है।
उक्त तल्ख टिप्पणी न्यायमूर्ति अजीत कुमार की एकलपीठ ने सुशीला पटेल की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। उत्तर प्रदेश के बागवानी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग में कार्यरत एक महिला कर्मचारी ने मातृत्व अवकाश के संबंध में संबंधित निदेशक के समक्ष एक आवेदन किया, जिसे निदेशक ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि पहले और दूसरे मातृत्व अवकाश के बीच दो वर्ष का अंतराल पूरा नहीं हुआ। कोर्ट ने अप्रैल 2022 में गुड्डी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश की मंजूरी के लिए दो गर्भधारण के बीच 180 दिन या दो वर्ष का अंतराल अनिवार्य नहीं है। इसके बावजूद याची के 7 दिसंबर 2024 को दाखिल नए आवेदन को भी निदेशक ने उसी आधार पर खारिज कर दिया। अंत में कोर्ट ने निदेशक को आदेश दिया कि वे 1 सितंबर को व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत हों और बताएं कि क्यों न उनके विरुद्ध न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत कार्रवाई शुरू की जाए।
यह भी पढ़ें: चांदी की चम्मच पर भारी पड़ रही चाय की चम्मच... केशव मौर्य ने राहुल गांधी पर कसा तंज
