मेरा शहर मेरी प्रेरणा : कुमार के समोसे...2 पैसे से लेकर 10 रुपये तक का सफर
नेमा प्रेमियों को शायद अब भी याद होगा... एक समय था जब शहर के तमाम सिनेमा हालों में इंटरवल के समय आवाज लगा करती थी-कुमार के समोसे, ले लो भाई कुमार के समोसे....आज वक्त बदल गया, सिनेमा हाल खामोश हैं, एक-एक कर लगभग सभी हाल बंद हो चुके हैं और वहां नए-नए व्यवसाय खुल गए हैं या खुलने की तैयारी में हैं। लेकिन कुमार के समोसे आज भी मौजूद हैं और जो इसके मुरीद हैं वह आज भी कुतुबखाना आते हैं तो समोसे खाए बिना नहीं रहते।
इन समोसों की यात्रा भी कम रोचक नहीं है। जगह वही,भट्टी वही और मसाले वही, लेकिन समोसों की यात्रा अभी भी अनवरत जारी है। इसके प्रेमी आज भी हैं। आज इस दुकान को तीसरी पीढ़ी के दीपक गुप्ता संभाल रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज से लगभग 70 साल पहले नंदूलाल गुप्ता ने तख्त और एक छोटी सी भट्टी के साथ दुकान खोली थी। 2 पैसे में एक समोसे के साथ यह लोगों की पसंद बना और आज 10 रुपये में एक समोसा हाथों-हाथ बिक रहा है। इस समोसे की खासियत यह है कि इसमें तीन तरह के मसाले इस्तेमाल होते हैं जिन्हें घर पर ही तैयार किया जाता है। आम नमक की जगह काले नमक का इस्तेमाल होता है जो इसे नया लुक देता है। इन मसालों का राज दीपक गुप्ता ने नहीं बताया लेकिन मसालों की शुद्धता की गारंटी जरूर दी।
सुबह करीब 11.30 से रात 8.30 तक आप यहां आकर समोसों का आनंद ले सकते हैं। दुकान आज भी कुमार सिनेमा परिसर में ही है और नंदूलाल गुप्ता के सपनों को उनकी यह पीढ़ी बखूबी संभाल रही है। यहां यह बताना जरूरी है कि एक समय दुकान पर इतनी भीड़ रहती थी कि लोगों को समोसों के लिए लाइन लगानी पड़ती थी। तंग गलियों में मौजूद जगत सिनेमा और हिंद सिनेमा तक कुमार के समोसे बेचे जाते थे। लोग इंटरवल के समय कुमार के समोसों का इंतजार करते थे। बड़ी सी भट्टी पर बढ़ी सी कढ़ाई चढ़ी रहती थी और समोसे लगातार सिकते रहते थे। भट्टी आज भी वही है और समोसे आज भी लगातार सिकते रहते हैं। समय का चक्र बदला लेकिन आज भी लोग कुमार के समोसों के मुरीद हैं और थैलियां भर-भर कर घर भी ले जाते हैं। अगर आप भी इन समोसों का आनंद लेना चाहते हैं तो आपको भी कोतवाली के पास कुमार सिनेमा तक आना होगा।
