special news: रायबरेली में देशी पॉलीहाउस का कमाल, रिंकू के मशरूम दे रहे स्वाद और दाम
युवा किसान ने मशरूम की खेती को किया आसान, लाखों रुपये के पॉलीहाउस की नहीं है जरूरत
आशीष दीक्षित/अंगद राही, रायबरेली। शिवगढ़ नगर पंचायत अन्तर्गत बसंतखेड़ा मजरे अजीतखेड़ा वार्ड के रहने वाले प्रगतिशील कृषक रिंकू रावत मशरूम की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं। खास बात यह है कि बिल्कुल देशी तकनीकि से बने पॉली हाउस में मशरूम की खेती करते हैं और जुगाड़ से मशरूम की खेत के लिए बेड बनाते हैं। वैसे एक पॉलीहाउस की कीमत करीब 12 लाख है लेकिन रिंकू के देशी पॉलीहाउस आधुनिक पॉलीहाउस को भी टक्कर दे रहे हैं। मशरूम की खेती के लिए यह देशी खाद, नीम की पत्ती, खली का उपयोग कर करते हैं। इनका मशरूम रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ सहित दिल्ली तक पहुंचता है।
रिंकू बताते हैं कि उनके पिता वर्ष 2008 से मशरूम की खेती करने के लिए जोर दे रहे थे किन्तु कोई अनुभव न होने की वजह से वे पीछे हट रहे थे। रिंकू ने पिता के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने 4 वर्ष पहले मुंशीगंज अमेठी के रहने वाले मुकेश रावत से मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण लिया था। उसके बाद उन्होंने मशरूम की खेती को अपने जीवकोपार्जन का जरिया बना लिया।

बसंतखेड़ा मजरे अजीतखेड़ा वार्ड के किसान रिंकू रावत की पहचान मशरूम के उन्नतिशील किसान के रूप में हैं। इन्होंने आधुनिक तकनीकि के पीछे छोड़ अपनी देशी तकनीकि से मशरूम की खेती को नया आयाम दिया है। बांस की खपाची से बना इनका पॉलीहाउस कमाल का है। खास बात यह है कि इन पॉलीहाउस में बिना किसी तकनीकि के न्यूनतम तापमान 15 डिग्री का बना रहता है जो मशरूम की खेती के लिए जरूरी है।
वहीं आधुनिक पॉलीहाउस में लाखों रुपये की मशीन लगाईं जाती हैं और उसके बाद तापमान को स्थिर किया जाता है लेकिन रिंकू के खेत में लगा देशी पॉलीहाउस बडे़ काम का है। मशरूम की खेती के लिए रिंकू ने बाकायदा 65 फुट लम्बा, 30 फुट चौड़ा पॉलीहाउस बना रखा है। जिसके अन्दर देशी जुगाड़ से चार पंक्तियों में 4 फुट चौड़े 60 फुट लम्बे कुल 16 बेड बनाए गए हैं।
बांस, सुतली, बद्दी से तैयार इन बेडों पर हर साल भूसे से तैयार कम्पोस्ट में नीम की खली, डीएपी, जिप्सम, राख इत्यादि सामग्री मिलाकर उसकी 3 इंच मोटी लेयर बिछाई जाती है। जिस पर अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में एक क्विंटल बटन मसरूम के स्पान की बुवाई होती है। रिंकू ने बताया कि नवम्बर के अंतिम सप्ताह में पिने दिखने लगती हैं और दिसम्बर के प्रथम सप्ताह से मशरूम निकलने लगती है। रिंकू ने बताया कि मशरूम की खेती के लिए 85 से 90 प्रतिशत नमी और 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए।
तापमान के चलते इस पॉली हाउस में सिर्फ 20 मार्च तक ही मशरूम का उत्पादन हो पाता है। हालांकि देशी तकनीकि में मार्च के बाद गर्मी पड़ने से पॉलीहाउस का तापमान बनाए रखना चुनौती सरीखा होती है इस कारण पूरे साल मशरूम की खेती नहीं हो पाती है। रिंकू का कहना है कि वह ऐसी विधा पर काम कर रहे हैं जो भीषण गर्मी में भी देशी पॉलीहाउस में न्यूनतम तापमान को बनाए रख सके। रिंकू बताते कि मशरूम की हार्वेस्टिंग करके 200 ग्राम की पैकिंग तैयार करते हैं। जिसे स्थाई सब्जी विक्रेताओं के साथ ही लखनऊ मंडी पहुंचाते हैं जहां बहुत अच्छी कीमत मिल जाती है। शादी विवाह के दौरान तो इतनी डिमांड रहती है कि मशरूम पूरा नहीं कर पाते हैं घर से ही पूरी मशरूम बिक जाती है।
मशरूम की मांग ने बढ़ाया आत्मविश्वास
मशरूम की लगातार बढ़ रही मांग ने युवाओं को इस खेती की ओर आकर्षित किया है। वैसे तो रिंकू ने पिता के सपने को पूरा करने के लिए मशरूम की खेती शुरू की थी किन्तु लगातार बढ़ रही मांग और मशरूम की खेती से हो रहे मोटे मुनाफे ने रिंकू का आत्मविश्वास बढ़ा दिया है।
28-35 दिन की होती है जटिल प्रकिया
इस खेती के लिए 28 से 35 दिन की जटिल प्रक्रिया से गुजरकर कंपोस्ट बनाना पड़ता है। रिंकू ने बताया कि वे अपने पालीहाउस और बेड़ों के हिसाब से 75 कुतल भूसा लेते हैं जिसे 48 से 72 घण्टे पानी में भिगोने के बाद उसमें यूरिया की एक प्रतिशत मात्रा मिलाकर 6 दिनों के लिए डेरी बनाकर लगा देते हैं। 7 वे दिन भूसे में 5 प्रतिशत जिप्सम,1 प्रतिशत डीएपी, 1 प्रतिशत पोटाश,1 प्रतिशत सिंग्नल सुपरफास्ट,5 प्रतिशत चोकर,1 प्रतिशत नीम की खली की मात्रा मिलाकर हर चौथे दिन पलटाई की जाती है।

कंपोस्ट तैयार होने के बाद बेड़ों पर उसकी 3 इंच मोटी लेयर बिछा दी जाती है, 24 से 30 घण्टे बाद जब कंपोस्ट ठण्डी हो जाती है तो स्पान की बुवाई कर दी जाती है। इस दौरान तापमान 15-25 डिग्री सेल्सियस तथा नमी 85-90 प्रतिशत बनाये रखते हैं। लगभग 10-12 दिनों में कवक जाल ( बीज के तंतु) केसिंग मिश्रण में फैल जाता हैं,जिसके बाद मशरूम की पिने बननी शुरु हो जाती हैं। आमतौर पर मशरूम ठण्डे मौसम की फसल है और इसके लिए अधिकतम 15-25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है,विपरीत तापमान में मशरूम को उगाना अपने आप में बड़ा चेलेंज है जो कम पूंजी वाले किसानों के लिए सम्भव नही है।
प्रतिदिन करनी पड़ती है सिंचाई
मशरूम की खेती में प्रतिदिन 2 से 3 बार स्प्रे मशीन से छिड़काव करना पड़ता है, इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि पानी की मात्रा ज्यादा न होने पाए। साथ ही भूसा भिगोने के समय स्पान का आर्डर करना पड़ता है। बिजाई के एक सप्ताह पहले पुन: बिजाई का समय बताना पड़ता है ताकि समय पर स्पान आ जाए और स्पान खराब न हो। रिंकू ने बताया कि पिछले 4 वर्षों से वे हरियाणा से ऑनलाइन बुकिंग करके स्पान मंगाते हैं।

मशीन से पॉलीहाफस के पास तैयार करते हैं कंपोस्ट
अब मशीन से बना हुआ कंपोस्ट भी आने लगा है। जिससे मशरूम की खेती और आसान हो गई है। बस आपको पूरी तकनीकी जानकारी होनी चाहिए। किन्तु मशीन से बना कंपोस्ट काफी महंगा पड़ता है जो कम पूंजी वाले किसानों की पहुंच से दूर है। वहीं दूसरी ओर किसानों को गांव में ही कंपोस्ट सामग्री आसानी से मिल जाती है, जिससे वे मेहनत कर अपने पॉलीहाउस के पास ही कंपोस्ट तैयार कर लेते हैं। जो मशीन से बनी कंपोस्ट की तुलना में काफी सस्ती पड़ती है। बदलते समय में अब प्रशिक्षण भी बदल गया है। अब आप एक ही दिन में मशरूम की खेती का तरीका सीख सकते हैं।
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