प्रयागराज : निस्तारित मामले की दोबारा जांच शुरू करवाने पर शिकायतकर्ता को लगाई फटकार
Amrit Vichar, Prayagraj : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिकायत के आधार पर निस्तारित मामले की दोबारा जांच शुरू करवाने वाले शिकायतकर्ता को फटकार लगाते हुए संबंधित विभाग को उसे नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने विभाग को शिकायतकर्ता से नोटिस द्वारा स्पष्टीकरण मांगने के निर्देश दिए कि क्यों ना उस पर जुर्माना लगाया जाए, क्योंकि उसकी शिकायत ने न केवल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है बल्कि याचियों को भी परेशान किया है, जो पिछले दो दशकों से अधिक समय से शांतिपूर्वक अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे।
इसके अलावा कोर्ट ने याचियों के खिलाफ पारित आदेश को खारिज करते हुए सचिव, माध्यमिक शिक्षा को निर्देश दिया कि वह शिकायतकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करें, जिसने बिना विचार किए याचियों के खिलाफ फर्जी आवेदन दाखिल किया है। दुर्गेश शर्मा और दो अन्य के मामले पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने पाया कि शिकायतकर्ता की शिक्षा विभाग के अधिकारियों के बीच अच्छी जान-पहचान है, जिसके कारण दो दशक के बाद निस्तारित मामले की जांच फिर से शुरू करवाई गई। मामले के अनुसार एक अल्पसंख्यक संस्थान में सहायक अध्यापक एलटी ग्रेड के पद के लिए तीन रिक्तियों को भरने हेतु विज्ञापन जारी किया गया था। याचियों ने उक्त पद के लिए आवेदन किया और उन्हें विधिवत नियुक्त कर लिया गया।
सेवा शर्तों के अनुसार 1 अगस्त 1998 को वे सेवा में शामिल हुए। संबंधित संस्थान की प्रबंधन समिति ने 7 अगस्त 1998 को अनुमोदन के लिए सभी दस्तावेज संबंधित डीआईओएस को भेजे। जब डीआईओएस ने कोई विशिष्ट आदेश पारित नहीं किया तो इसे उनकी स्वीकृति माना गया, लेकिन जब याचियों के वेतन का भुगतान नहीं हुआ, तब उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके सापेक्ष कोर्ट ने याचियों के पक्ष में निर्णय सुनाया कि याचियों को विधिवत अनुमोदित एलटी ग्रेड शिक्षकों के वेतनमान के अनुसार एंग्लो बंगाली गर्ल्स इंटर कॉलेज, आगरा में भुगतान किया जाए। अंत में सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याचियों को कोर्ट के आदेशानुसार नियमित वेतन मिला और प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार पदोन्नति भी मिली, लेकिन वर्ष 2023 में यानी दो दशक बाद भूपेंद्र सिंह नाम के व्यक्ति ने याचियों में से एक की नियुक्ति के संबंध में शिकायत दर्ज की, जिस पर संज्ञान लेते हुए याचियों की नियुक्ति रद्द कर उनके वेतन रोक दिए गए।
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